15 अगस्त 1947 को भारत तथाकथित रुप से आज़ाद हुआ। मैं
तथाकथित इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि यह आजादी भारत को डोमिनियन स्टेट्स के रुप में मिली।
उस समय के समाचार पत्रों ने जैसे के स्टेट्समैन ने अपनी हैडलाइन में लिखा “टू डोमिनियनस
(भारत और पाकिस्तान) आर बार्न”. यह थी भारत मे पालिटीकल
फ्रिडम यानि केवल राजनीतिक आजादी की शुरुआत। इसके मायने यह थे कि अब हुकमरान तो भारतीय
होंगें लेकिन हुकूमत अग्रेजो की ही रहेगी। एक 4000 पेज का सत्ता हस्तांतरण का समझोता
भी हुआ जो आज भी गोपनीय दस्तावेज के रूप में राष्ट्रपति भवन में सुरक्षित रखा है। और
आम जनता इसी मुगालते मे रही कि वो एक आजाद लोकतांत्रिक मुल्क में जी रही है। इसलिए
जनता ने भी यह सवाल नहीं पूछे कि 4000 पेज के दस्तावेज में सत्ता हस्तांतरण की शर्तें
क्या है? दूसरी तरफ सत्ता ने भी जनता को बरगलाये रखने के लिए हजारों हथकंडे अपनाये
और वह आज भी कर रही है ताकि जनता के सवालों में सत्ता सुख न चला जाए!
पिछले चार साल में सबने यह सवाल तो उठाये कि कांग्रेस
ने 70 वर्षों में क्या किया लेकिन कोई यह बात न तो पूछ रहा है और न बता रहा है कि
1947 में सत्ता हस्तांतरण की शर्तें क्या थी? वह शर्तें 70 साल बाद भी गोपनीय क्यों
है? पता तो लगे भारत की आजादी किन शर्तों में बंधी हुई है!
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आप सोच रहे होंगे की 2018 में दीवाली के मौके पर
मैं 1947 की बात क्यों कर रहा हूँ, तो वो इसलिए कि पिछले
4 वर्षों में चीनी सामान का इतना विरोध देखने सुनने को मिला जैसे कि आजादी का आंदोलन
फिर शुरू हो गया हो। यह आंदोलन दिवाली पर और भी उग्र और तेज हो जाता था। कभी व्हाट्सएप
पर संदेश आता कि चीनी सामान खरीदने वाला गद्दार तो कभी फेसबुक वाल चीनी सामान के विरोध
में भरी दिखाई देती! सड़कों पर लोग चीनी सामान के विरोध में जूलूस निकालते दिखाई देते।
ऐसा एहसास होता मानो भारत के लोग अब चीन से अपनी आजादी लेकर ही दम लेंगे। मै भी कोई
इलैक्ट्रॉनिक सामान खरीदने जाता तो देशद्रोह की आत्मग्लानि से भर जाता क्योंकि ऐसा
कोई सामान ही नजर नहीं आता जिसमें चीन में निर्मित पार्ट्स न लगे हो।
पर इस दीवाली की बात कुछ और ही रही न कोई वाट्सऐप
संदेश आया जिसमें चीन में बने सामान को खरीदने का विरोध किया हो। फेसबुक वाल पर भी
चीन में बने सामान का कोई विरोध नहीं दिखाई दिया, बाजारों में चीनी कम्पनियों के सामान को लोग दिल
खोल कर खरीद रहे थे। ऐसा लग रहा था 4 वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद भारत ने चीन से
आजादी ले ली है। इसलिए इस दिवाली चीन से आजादी के उत्सव के रूप में मनाई जा रही है।
ये अलग बात है कि इस आजादी की लड़ाई में कितने क्रांतिकारी देशभक्त शहिद हुए कितनों
को फांसी पर लटका दिया गया इसका कोई लेखा-जोखा अभी तक नहीं मिला और आगे मिलने की उम्मीद
भी नहीं है।
वैसे इस आजादी की रूपरेखा तो इसी वर्ष अप्रैल में
ही तैयार हो गयी थी जब प्रधानमंत्री मोदीजी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से एक अनऔपचारिक
मिटींग करने चीन के वूआन शहर में गये थे। राष्ट्रपति शी शी जिनपिंग ने प्रधानमंत्री
मोदीजी को बड़े प्यार से चीन की चाय पिलाई और फिर नौका विहार भी करवाया। चीन के कलाकारों
ने मोदीजी के लिए एक हिन्दी फिल्म का गीत भी गाया जिसके बोल कुछ इस तरह थे,
“तू , तू है वही दिल ने
जिसे अपना कहा, अब तो ये जीना तेरे बिन है
सजा।
मिल जाएं इस तरह, दो लहरें जिस तरह, फिर हो न जुदा, हाँ ये वादा रहा।“
अब चाय के साथ तो मोदीजी का बहुत पुराना रिश्ता
रहा है। उस पर नौका विहार और फिर इतना मनमोहक गीत तो फिर कौन न मर मिटे चीन की आवभगत
पर। और फिर तब से ही दौनों राष्ट्राध्यक्षों में दिल का रिश्ता बन गया और हिन्दी-चीनी
फिर भाई भाई बन गये।
जून में चीन के क्वींगदाओ में शंघाई कारपोरेशन आर्गनाइज़ेशन
(एस सी ओ) के शिखर सम्मेलन में पहली बार भारत की तरफ से एक प्रधानमंत्री के रूप में
मोदी जी फिर चीन गये। भारत और चीन के बीच कई द्विपक्षीय व्यापार समझोतौं पर हस्ताक्षर
भी किये।
तभी से देख लिजीए भारत में चीन में निर्मित सामान
के विरोध की बात तो एक तरफ आर. बी. आई. ने चीन को अपना बैंक
“बैंक आफ चाइना“ भी भारत में खोलने की इजाजत दे दी। कहीं कोई विरोध दिखाई दिया? कम
से कम मुझे तो नहीं दिखाई दिया। वीवो ने तो पहले से ही क्रिकेट और कब्बडी में अपनी
पैंठ बना रखी है।
और अब दिवाली पर देख लिजिए क्या किसी ने आपको व्हाट्सएप
संदेश भेजा के चीन का सामान न खरीदें, या फिर चीन में निर्मित सामान खरीदने वाला गद्दार!
फेसबुक पर भी कोई ऐसा संदेश नहीं मिला, यूट्यूब पर कोई ऐसा विडियो नहीं मिला और न ही सड़कों
पर कोई जूलूस निकलता दिखाई दिया।
सचमुच यह दिवाली तो भारत की चीन से आजादी का
जश्न लेकर आई है। अब चीन में निर्मित कोई सामान खरीदें, कितना भी खरीदें कोई आपको देशद्रोही नहीं कहेगा।
मैं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को ह्रदय
से धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने हमें चीन से आजादी दिलाई।
मैं उन सभी क्रांतिकारी शहीदों को भी शत् शत् नमन्
करता हूँ जिन्होंने आजादी की इस लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया और भारत को
चीन से आजादी दिलवा दी।
क्या आप उन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित नहीं करेगें?
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